शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

दीवाली के शुभावसर पर

दीवाली के शुभावसर पर हमारी और से हार्दिक शुभकामनाएँ |
इस अवसर पर कैथल के प्रसिद्ध हास्य कवि श्री तेजिन्द्र के क्षणिकाएँ  

चोट्टी
पत्नी की
चोट्टी गूंथते-गूंथते 
वे इस कला में 
होशियार हो गए हैं 
यानि 
चोट्टी के
कलाकार हो गए हैं |

दोस्ती
वह
कुछ  इस तरह
दोस्ती निभाता है
सिगरेट खुद पीता है
धुंआ मुझे पिलाता है |

मेजबानी
मेजबानी महंगाई में
निभाई नहीं जाती
चाय पूछी जाती है
पिलाई नहीं जाती ||
                
                     -तेजिन्द्र
     

साहित्य सभा वार्षिकोत्सव 22/08/2010

  




डा.श्रीमती मुक्ता(निदेशिका,हरियाणा साहित्य अकादमी)


डा. श्री चन्द्र त्रिखा(पूर्व निदेशक,हरियाणा साहित्य अकादमी) 



श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला(विद्युत मंत्री) हरियाणा को स्मृति चिह्न 



 श्री शमशेर सिंह सुरजेवाला,श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला(विद्युत मंत्री),डा.श्रीमती मुक्ता(निदेशिका,हरियाणा साहित्य अकादमी),डा. श्री चन्द्र त्रिखा(पूर्व निदेशक,हरियाणा साहित्य अकादमी) 


श्री कमलेश शर्मा के काव्य संग्रह(बेटियां बेहतर समझती हैं ) का विमोचन

श्री गुलशन मदान के गजल संग्रह (अधखुली खिड़कियाँ) का लोकार्पण  

श्री अमृत लाल मदान (प्रधान,साहित्य सभा कैथल  )

बुधवार, 11 अगस्त 2010

वार्षिकोत्सव

साहित्य सभा कैथल २२ अगस्त २०१० को अपना वार्षिकोत्सव मनाने जा रही है।जिस अवसर पर कई पुस्तकों का लोकार्पण होगा तथा बहुभाषायी कवि सम्मेलन का आयोजन होगा ।

स्थान- सभागार (आर.के.एस.डी कालेज) कैथल (हरियाणा) भारत
मुख्यातिथि- डा.मुक्ता (निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी)

आप सादर आमंत्रित हैं ।

-------डा.अमृत लाल मदान
           प्रधान
           साहित्य सभा कैथल
           sahityasabha.kaithal@gmail.com
  

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

किनारा कर गया

क्या अजब ये हाल मेरा, ग़म तुम्हारा कर गया
इस भरी दुनिया में मुझको बेसहारा कर गया

साथ रहना था तुझे तो इस अज़ल के बाद भी
तू तो मेरी ज़िन्दगी से ही किनारा कर गया

वह समन्दर के ख़ज़ाने से भी नावाक़िफ़ रहा
साहिलों से जो समन्दर का नज़ारा कर गया

उसके हाथों में न जाने किस तरह का था हुनर
इस तरह छुआ कि ज़र्रे को सितारा कर गया ॥
                                    
                                                           -गुलशन मदान

रविवार, 20 जून 2010

सुनसान क्यूं है

प्रिय पाठको
आज आपके लिए गज़लकार ''ईश्वर चंद गर्ग'' की एक रचना (सही देखने के लिए रचना पर एक चटका लगायें):-

रविवार, 6 जून 2010

बना गया कोई

मेरी दुनिया से चला गया कोई
जख्म दिल पे बना गया कोई |

नींद उड़ गई चैन जाता रहा 
हाले-दिल ऐसा बना गया कोई |

मैं बेबस ,वह भी मजबूर है 
दोनों को लाचार बना गया कोई | 

इश्क क़ुर्बानी पे आ पहुंचा 
कैसी ये पट्टी पढ़ा गया कोई |

क्या किसी से शिकवा करूँ 
लाइलाज रोग लगा गया कोई ||
    
             -ललित कुमार "दिलकश"  

मंगलवार, 1 जून 2010

बडी होती लडकी

अम्मा
क्या तुमने
कभी घ्यान से देखा है
गुडिया से बिटिया
और बिटिया से
लडकी
और लडकी से
औरत होने की और
बढती अपनी लाडो को

अम्मा
तुम्हारी लाडो तो
सदा से ही
मर मर कर
जीती रही है
मां-बापू के घर में
भाई के लिए
फिर पति के लिए
सास ससुर के लिए
अपने बच्चों के लिए
उसे कब
नसीब हो पाते हैं
लाडो रहने के क्षण

अम्मा
मत दोहराना इतिहास
अपनी लाडो को
रहने देना
लाडो बिटिया लडकी
ताकि वह
बस जी सके
और जीवन रस पी सके।
              
                  -प्रद्युम्न भल्ला

सोमवार, 24 मई 2010

ऐतबार की बातें

रंग, खुशबू, बहार की बातें
कीजिए कुछ तो प्यार की बातें ।

उम्र काटी है बेकरारी में
अब तो कीजे करार की बातें ।

आ भी जाओ कि हो चुकी है बहुत
आपके इन्तज़ार की बातें ।

झूठी बातों से दिल नहीं लगता
कुछ करो ऐतबार की बातें ।

बज़्म में देर तक हुई कल तो
हुस्न की और प्यार की बातें ।

ज़िक्रे-‘गुलशन’ हुआ तो होंगी ही
फूल के साथ ख़ार की बातें ।

         -गुलशन मदान

शनिवार, 22 मई 2010

आतंकवाद

बम बारूद और बन्दूक
सोचकर ही
हैरान-सा हो जाता हूँ
लेकिन वह
जो हर रोज
इनके साथ रहता है
अपना जीवन जीता है
कैसे जीता होगा
अँधेरा, अंत और आतंक
जिसके सहचर हैं
दुनिया की मानवता
जिसका निशाना बनी है
जो अंत और आतंक के लिए
अंधेरे का सहारा लेकर
बम, बारूद और बन्दूक के साथ
लालिमा को अपना लक्ष्य बनाकर
आचरण करता है
क्या नाम दूँ उसे
मुल्ला उमर, मसूद अजहर
या फिर
ओसामा-बिन-लादेन
पर , हाँ
जगत उसको
आतंकवाद का नाम देता है॥

-दिनेश शर्मा 

मंगलवार, 11 मई 2010

आ अब लौट चले

मुअन जोदडो से प्राप्त
सिंधु घाटी के अवशेष
मिट्टी की गाडी
कांसे के बर्तन
आभूषण और औजार
जैसी हजारों वस्तुएं
पर
कोई हथियार न मिलना
सिद्ध करता है
शासन की स्वच्छता
तानाशाही का अभाव
सभ्य ,अनुशासित जीवन
एक समृद्ध संस्कृति को
जो आमन्त्रित करती है हमें
छोडकर ऎसी आधुनिकता को
जहाँ है खून-खराबा
हर ओर शोर-शराबा
सब ओर
हर मोड पर
यमराज नजर आता
आदमियों के अथाह समन्दर में
नहीं इन्सान नजर आता
चल लौट चलें
उस और चलें
आ लौट चलें।

 :- दिनेश शर्मा

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

अवसर न मिलेगा

यह राजपथ है गांव की पगडण्डी नहीं है
साये के लिए राह में तरुवर न मिलेगा

उस खुशनुमा माहौल की है आस मुझे थी
जिस दिन किसी भी हाथ में पत्थर न मिलेगा

इस वक्त संभल जाओगे तो ठीक रहेगा
फिर ज़िंदगी में आपको अवसर न मिलेगा

कुरुक्षेत्र तो मिलेगा हर इक मोड़ पे मगर
संदेश लिए गीता का गिरधर न मिलेगा

चलना संभल संभल के तू राहे-हयात में
रहजन मिलेगे सब तुझे रहबर न मिलेगा

आज़ादियों के जश्न ये बेकार हैं सभी
मुफ़लिस के सर पे जब तलक छप्पर न मिलेगा॥
-गुलशन मदान

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

गज़ल

आप अपने को जानता भी नही
जैसे ख़ुद से तो राबता ही नहीं

रात दिन खोया खोया रहता है
और कहने को लापता भी नहीं

है खबर उसको सारी दुनिया की
अपने बारे में कुछ पता भी नहीं

उसने की यूं गुनाह से तौबा
जैसे उसकी कोई ख़ता भी नहीं

सुन के आंगन में आहटें ‘गुलशन’
क्या अजब है मैं चौंकता भी नहीं
                       --गुलशन मदान

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

मां शारदे नमन तुझे

साहित्य सभा कैथल साहित्य संसार में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है मां शारदा की अनुकंपा से आज हम ''साहित्य सभा कैथल'' का यह ब्लाग शुरु कर रहे हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य साहित्य की सेवा के साथ सामाजिक दायित्त्वों का कलम से निर्वाह करना रहेगा बहुत सारी बातें होगीं,अपना परिचय भी आपको देंगे तथा इस साहित्य सभा रुपी परिवार के सदस्यों से भी आपको मिलवायेंगें पर , आज तो मां शारदे को नमन के साथ बात समाप्त करते हैं :-
हे मात तुम्हारी अनुकंपा
हम पर की जो इतनी कृपा
भूले-भटके हम बाल तेरे
करना मार्ग प्रशस्त सदा॥