मंगलवार, 13 नवंबर 2012

सस्नेह निमन्त्रण

आप सभी साहित्यकार साथियों के लिए हार्दिक प्रसन्नता का विषय है कि हर वर्ष की तरह इस बार भी साहित्य सभा कैथल अपना वार्षिकोत्सव मना रही है :

    दिनांक               :                     18 नवम्बर 2012 ( रविवार )

   समय                  :                     प्रात: 11 बजे

   मुख्य-अतिथि    :                     शमशेर सिंह सुरजेवाला
                                                                   राष्ट्रीय अध्यक्ष,
                                                     अखिल भा0 किसान खेत मजदूर संघ

  विशिष्ट-अतिथि   :                     डा0 चन्द्र त्रिखा
                                                          पूर्व निदेशक,
                                                     हरियाणा साहित्य अकादमी

   अध्यक्ष              :                      श्याम सखा 'श्याम'
                                                                     निदेशक,
                                                     हरियाणा साहित्य अकादमी

आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

रविवार, 10 जून 2012

खत प्रियतम के नाम

ख़त लिक्खा खुशखत के साथ,                                                                     
खैर, दुआ, चाहत के साथ ।

परदेसी प्रियतम के नाम
लिखती हूं शिद्दत के साथ ।

कोई अच्छी खबर नहीं है
तुम पढ़ना हिम्मत के साथ ।

माँ की हालत भी पतली है,
बापू की हालत के साथ ।

देवर धुत्त पड़ा रहता है,
जाएगा इस लत के साथ ।

डिग्री तो लाया है बड़का
पढ़ लिख कर मेहनत के साथ ।

लेकिन अब मिलती हैं सबको
नौकरियाँ रिश्वत के साथ ।

छुटका अब रहता है हरदम,
आवारा दलपत के साथ ।

लाखों ऐब चले आते हैं,
एक बुरी आदत के साथ ।

उसको तो खाना-पीना है,
रोज़ बुरी संगत के साथ ।

मुनिया फस्ट रही बस्ती में,
अट्ठासी प्रतिशत के साथ ।

सोचूं इसकी शादी कर दूँ,
लड़का देख बखत के साथ ।

गली गली में खड़े लफंगे,
देखें बदनीयत के साथ ।

कमला जैसे पगली हो गई,
लगती हर हरकत के साथ ।

काली माँ का भूत था अन्दर,
उतरा जो मन्नत के साथ ।

गंगाराम ने ब्याह दी बेटी,
बूढ़े बदसूरत के साथ ।

रधिया कल कुएँ में कूदी
लुटी हुई इज़्ज़त के साथ ।

बुधवा का सच कौन सुनेगा,
हर मुखबर ताकत के साथ ।

आज इलैक्शन जीत गया फिर
दुर्जन सिंह बहुमत के साथ ।

काले की बहु भाग गयी है,
उस गोरे सम्पत के साथ ।

दयानन्द अब भी लड़ता है,
मस्जिद के शौकत के साथ ।

हैं गठबन्धन की सरकारें,
थोड़े से जनमत के साथ ।

अब तो बस ये क्रिकेट वाले,
धन लूटें शौहरत के साथ ।

घर में मनीआर्डर नहीं आया,
कब तक इस गुरबत के साथ ।

चंद दरारें दीवारों में,
मुँह खोले हैं छत के साथ ।

घर की नीलामी का नोटिस
आया है मुहलत के साथ ।

अब के फसल बहा गयी बारिश,
कौन लड़े कुदरत के साथ ।

घर में लाख झमेले और मैं,
लड़ती हर आफत के साथ ।

हाल पूछने कौन आएगा,
सब रिश्ते दौलत के साथ ।

आवभगत भी न कर पायी,
भाई का शरबत के साथ ।

कैसी हालत है मत पूछो,
ज़िंदा हूँ ज़िल्लत के साथ ।

बिजली, दूध किराने का बिल,
भेज रही हूँ खत के साथ ।

मैं तो मन्दिर में लड़ आई,
पत्थर की मूरत के साथ ।

मर्द गया परदेस न जाने
क्या बीती औरत के साथ ।

तुम मत लापरवाही करना
अपनी इस सेहत के साथ ।

खर्च गुज़ारा कर ही लूंगी
मैं ज्यादा बरकत के साथ ।

अब तो वापिस आ भी जाओ,
रोटी है किस्मत के साथ ।