रविवार, 20 जून 2010

सुनसान क्यूं है

प्रिय पाठको
आज आपके लिए गज़लकार ''ईश्वर चंद गर्ग'' की एक रचना (सही देखने के लिए रचना पर एक चटका लगायें):-

रविवार, 6 जून 2010

बना गया कोई

मेरी दुनिया से चला गया कोई
जख्म दिल पे बना गया कोई |

नींद उड़ गई चैन जाता रहा 
हाले-दिल ऐसा बना गया कोई |

मैं बेबस ,वह भी मजबूर है 
दोनों को लाचार बना गया कोई | 

इश्क क़ुर्बानी पे आ पहुंचा 
कैसी ये पट्टी पढ़ा गया कोई |

क्या किसी से शिकवा करूँ 
लाइलाज रोग लगा गया कोई ||
    
             -ललित कुमार "दिलकश"  

मंगलवार, 1 जून 2010

बडी होती लडकी

अम्मा
क्या तुमने
कभी घ्यान से देखा है
गुडिया से बिटिया
और बिटिया से
लडकी
और लडकी से
औरत होने की और
बढती अपनी लाडो को

अम्मा
तुम्हारी लाडो तो
सदा से ही
मर मर कर
जीती रही है
मां-बापू के घर में
भाई के लिए
फिर पति के लिए
सास ससुर के लिए
अपने बच्चों के लिए
उसे कब
नसीब हो पाते हैं
लाडो रहने के क्षण

अम्मा
मत दोहराना इतिहास
अपनी लाडो को
रहने देना
लाडो बिटिया लडकी
ताकि वह
बस जी सके
और जीवन रस पी सके।
              
                  -प्रद्युम्न भल्ला