शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

अवसर न मिलेगा

यह राजपथ है गांव की पगडण्डी नहीं है
साये के लिए राह में तरुवर न मिलेगा

उस खुशनुमा माहौल की है आस मुझे थी
जिस दिन किसी भी हाथ में पत्थर न मिलेगा

इस वक्त संभल जाओगे तो ठीक रहेगा
फिर ज़िंदगी में आपको अवसर न मिलेगा

कुरुक्षेत्र तो मिलेगा हर इक मोड़ पे मगर
संदेश लिए गीता का गिरधर न मिलेगा

चलना संभल संभल के तू राहे-हयात में
रहजन मिलेगे सब तुझे रहबर न मिलेगा

आज़ादियों के जश्न ये बेकार हैं सभी
मुफ़लिस के सर पे जब तलक छप्पर न मिलेगा॥
-गुलशन मदान

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

गज़ल

आप अपने को जानता भी नही
जैसे ख़ुद से तो राबता ही नहीं

रात दिन खोया खोया रहता है
और कहने को लापता भी नहीं

है खबर उसको सारी दुनिया की
अपने बारे में कुछ पता भी नहीं

उसने की यूं गुनाह से तौबा
जैसे उसकी कोई ख़ता भी नहीं

सुन के आंगन में आहटें ‘गुलशन’
क्या अजब है मैं चौंकता भी नहीं
                       --गुलशन मदान

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

मां शारदे नमन तुझे

साहित्य सभा कैथल साहित्य संसार में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है मां शारदा की अनुकंपा से आज हम ''साहित्य सभा कैथल'' का यह ब्लाग शुरु कर रहे हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य साहित्य की सेवा के साथ सामाजिक दायित्त्वों का कलम से निर्वाह करना रहेगा बहुत सारी बातें होगीं,अपना परिचय भी आपको देंगे तथा इस साहित्य सभा रुपी परिवार के सदस्यों से भी आपको मिलवायेंगें पर , आज तो मां शारदे को नमन के साथ बात समाप्त करते हैं :-
हे मात तुम्हारी अनुकंपा
हम पर की जो इतनी कृपा
भूले-भटके हम बाल तेरे
करना मार्ग प्रशस्त सदा॥