बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

कमाल पत्थर का

किसने देखा मलाल पत्थर का
किसने पूछा है हाल पत्थर का ।

नींव का दर्द कोई क्या जाने
सबने देखा जमाल पत्थर का ।

कोई हलचल नही हुई अबके
दिन थे पत्थर के साल पत्थर का ।

गर्मजोशी से कोई क्या मिलता
दिल में था हर ख़्याल पत्थर का ।

इक किला है पुरानी दिल्ली में
वो किला भी है लाल पत्थर का ।

ताज में भी तो संगमरमर है
है वहाँ भी कमाल पत्थर का ।
                   - गुलशन मदान

शनिवार, 1 जनवरी 2011

बेटियाँ

बच्चों को स्कूल छोड़ने व लाने वाले रिक्शा वाले के चेहरे पर मैं कई दिनों से चिन्ता की रेखाएं साफ पढ़ सकता था। एक दिन रहा ना गया तो दोपहर बच्चे छोड कर जाते वक्त मैंने उसे आवाज दे ली।
    -आओ बुद्ध राम, पानी पी लो बड़ी गर्मी है
 वह रूक गया मैंने अपने कमरे में बिठा कर पानी पिलाया। पानी पी कर वह माथे और चेहरे का पसीना पोछने लगा।
    -क्या बात है बई रोज से लगता है तुम परेशान हो?
    -नहीं बाबू जी ऐसी कोई खास बात नहीं है। उस ने कह तो दिया मगर वह अपनी पीड़ा छपा न सका।
    -देखो बुद्धराम नहीं बताना चाहते तो तुम्हारी मर्जी।
    -नहीं बाबू जी, ऐसी कोई बात नही है
    -दरअसल दस दिन बाद बिटिया की शादी करनी है और अपने भाइयों, बिरादरी वालों, यहाँ तक कि जिनके बच्चे छोड़ता ले जाता हूँ सब से पूछ चुका हूँ थोडे पैसे की कमी रह गई है...................वह सकुलाते हुए बोला
    -लेकिन मुझ से तो नहीं पूछा?
    -वो बाबू जी क्या है कि मेम साहब से पूछा था उन्होंने मना कर दिया था, कहते कहते मुझे लगा कि वह रो ही देगा।
    -कितनी कमी रह गई?
    -यही पांच हजार रूपये
       -लौटाओगे कैसे......मैंने पूछा
    -हर महीने पांच-पांच सौ देकर......बाबू जी आप चाहे तो ब्याज भी.........कहते हुए उस की आंखों में चमक सी आ गई थी।
    -ये लो पांच हजार रुपये जब-चाहो लौटा देना। मैं उसे रुपये दे कर तुरन्त भीतर घुस गया। भीतर घुसते ही और उसके जाते ही पत्नी की आवाज सुनाई दी।
    -आपने पांच हजार रुपये उठा कर उसे दे दिये न पता मालूम, न ठिकाना और ये पैसे तो मैंने वैसे भी अगले सप्ताह आ रही बिटिया के लिये रखे थे। उसे कपड़े सामान वगैरा.........पत्नी ने थोडा सा गुस्से से कहा।
    -मैंने भी तो वह पैसे बिटिया को ही दिए हैं.................बेटी चाहे गरीब की हो या अमीर की?बेटी तो बेटी होती है।
    अब पत्नी खामोश थी।
          ---------------   -डा0 प्रद्युम्न भल्ला कैथल

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

दीवाली के शुभावसर पर

दीवाली के शुभावसर पर हमारी और से हार्दिक शुभकामनाएँ |
इस अवसर पर कैथल के प्रसिद्ध हास्य कवि श्री तेजिन्द्र के क्षणिकाएँ  

चोट्टी
पत्नी की
चोट्टी गूंथते-गूंथते 
वे इस कला में 
होशियार हो गए हैं 
यानि 
चोट्टी के
कलाकार हो गए हैं |

दोस्ती
वह
कुछ  इस तरह
दोस्ती निभाता है
सिगरेट खुद पीता है
धुंआ मुझे पिलाता है |

मेजबानी
मेजबानी महंगाई में
निभाई नहीं जाती
चाय पूछी जाती है
पिलाई नहीं जाती ||
                
                     -तेजिन्द्र
     

साहित्य सभा वार्षिकोत्सव 22/08/2010

  




डा.श्रीमती मुक्ता(निदेशिका,हरियाणा साहित्य अकादमी)


डा. श्री चन्द्र त्रिखा(पूर्व निदेशक,हरियाणा साहित्य अकादमी) 



श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला(विद्युत मंत्री) हरियाणा को स्मृति चिह्न 



 श्री शमशेर सिंह सुरजेवाला,श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला(विद्युत मंत्री),डा.श्रीमती मुक्ता(निदेशिका,हरियाणा साहित्य अकादमी),डा. श्री चन्द्र त्रिखा(पूर्व निदेशक,हरियाणा साहित्य अकादमी) 


श्री कमलेश शर्मा के काव्य संग्रह(बेटियां बेहतर समझती हैं ) का विमोचन

श्री गुलशन मदान के गजल संग्रह (अधखुली खिड़कियाँ) का लोकार्पण  

श्री अमृत लाल मदान (प्रधान,साहित्य सभा कैथल  )

बुधवार, 11 अगस्त 2010

वार्षिकोत्सव

साहित्य सभा कैथल २२ अगस्त २०१० को अपना वार्षिकोत्सव मनाने जा रही है।जिस अवसर पर कई पुस्तकों का लोकार्पण होगा तथा बहुभाषायी कवि सम्मेलन का आयोजन होगा ।

स्थान- सभागार (आर.के.एस.डी कालेज) कैथल (हरियाणा) भारत
मुख्यातिथि- डा.मुक्ता (निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी)

आप सादर आमंत्रित हैं ।

-------डा.अमृत लाल मदान
           प्रधान
           साहित्य सभा कैथल
           sahityasabha.kaithal@gmail.com
  

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

किनारा कर गया

क्या अजब ये हाल मेरा, ग़म तुम्हारा कर गया
इस भरी दुनिया में मुझको बेसहारा कर गया

साथ रहना था तुझे तो इस अज़ल के बाद भी
तू तो मेरी ज़िन्दगी से ही किनारा कर गया

वह समन्दर के ख़ज़ाने से भी नावाक़िफ़ रहा
साहिलों से जो समन्दर का नज़ारा कर गया

उसके हाथों में न जाने किस तरह का था हुनर
इस तरह छुआ कि ज़र्रे को सितारा कर गया ॥
                                    
                                                           -गुलशन मदान

रविवार, 20 जून 2010

सुनसान क्यूं है

प्रिय पाठको
आज आपके लिए गज़लकार ''ईश्वर चंद गर्ग'' की एक रचना (सही देखने के लिए रचना पर एक चटका लगायें):-