क्या अजब ये हाल मेरा, ग़म तुम्हारा कर गया
इस भरी दुनिया में मुझको बेसहारा कर गया
साथ रहना था तुझे तो इस अज़ल के बाद भी
तू तो मेरी ज़िन्दगी से ही किनारा कर गया
वह समन्दर के ख़ज़ाने से भी नावाक़िफ़ रहा
साहिलों से जो समन्दर का नज़ारा कर गया
उसके हाथों में न जाने किस तरह का था हुनर
इस तरह छुआ कि ज़र्रे को सितारा कर गया ॥
-गुलशन मदान
bबढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
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