आप अपने को जानता भी नही
जैसे ख़ुद से तो राबता ही नहीं
रात दिन खोया खोया रहता है
और कहने को लापता भी नहीं
है खबर उसको सारी दुनिया की
अपने बारे में कुछ पता भी नहीं
उसने की यूं गुनाह से तौबा
जैसे उसकी कोई ख़ता भी नहीं
सुन के आंगन में आहटें ‘गुलशन’
क्या अजब है मैं चौंकता भी नहीं
--गुलशन मदान
अच्छी प्रस्तुति। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
जवाब देंहटाएंkyaa baat....kyaa baat....kyaa baat.... lajawaab....
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