शनिवार, 1 जनवरी 2011

बेटियाँ

बच्चों को स्कूल छोड़ने व लाने वाले रिक्शा वाले के चेहरे पर मैं कई दिनों से चिन्ता की रेखाएं साफ पढ़ सकता था। एक दिन रहा ना गया तो दोपहर बच्चे छोड कर जाते वक्त मैंने उसे आवाज दे ली।
    -आओ बुद्ध राम, पानी पी लो बड़ी गर्मी है
 वह रूक गया मैंने अपने कमरे में बिठा कर पानी पिलाया। पानी पी कर वह माथे और चेहरे का पसीना पोछने लगा।
    -क्या बात है बई रोज से लगता है तुम परेशान हो?
    -नहीं बाबू जी ऐसी कोई खास बात नहीं है। उस ने कह तो दिया मगर वह अपनी पीड़ा छपा न सका।
    -देखो बुद्धराम नहीं बताना चाहते तो तुम्हारी मर्जी।
    -नहीं बाबू जी, ऐसी कोई बात नही है
    -दरअसल दस दिन बाद बिटिया की शादी करनी है और अपने भाइयों, बिरादरी वालों, यहाँ तक कि जिनके बच्चे छोड़ता ले जाता हूँ सब से पूछ चुका हूँ थोडे पैसे की कमी रह गई है...................वह सकुलाते हुए बोला
    -लेकिन मुझ से तो नहीं पूछा?
    -वो बाबू जी क्या है कि मेम साहब से पूछा था उन्होंने मना कर दिया था, कहते कहते मुझे लगा कि वह रो ही देगा।
    -कितनी कमी रह गई?
    -यही पांच हजार रूपये
       -लौटाओगे कैसे......मैंने पूछा
    -हर महीने पांच-पांच सौ देकर......बाबू जी आप चाहे तो ब्याज भी.........कहते हुए उस की आंखों में चमक सी आ गई थी।
    -ये लो पांच हजार रुपये जब-चाहो लौटा देना। मैं उसे रुपये दे कर तुरन्त भीतर घुस गया। भीतर घुसते ही और उसके जाते ही पत्नी की आवाज सुनाई दी।
    -आपने पांच हजार रुपये उठा कर उसे दे दिये न पता मालूम, न ठिकाना और ये पैसे तो मैंने वैसे भी अगले सप्ताह आ रही बिटिया के लिये रखे थे। उसे कपड़े सामान वगैरा.........पत्नी ने थोडा सा गुस्से से कहा।
    -मैंने भी तो वह पैसे बिटिया को ही दिए हैं.................बेटी चाहे गरीब की हो या अमीर की?बेटी तो बेटी होती है।
    अब पत्नी खामोश थी।
          ---------------   -डा0 प्रद्युम्न भल्ला कैथल

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