शनिवार, 10 अप्रैल 2010

गज़ल

आप अपने को जानता भी नही
जैसे ख़ुद से तो राबता ही नहीं

रात दिन खोया खोया रहता है
और कहने को लापता भी नहीं

है खबर उसको सारी दुनिया की
अपने बारे में कुछ पता भी नहीं

उसने की यूं गुनाह से तौबा
जैसे उसकी कोई ख़ता भी नहीं

सुन के आंगन में आहटें ‘गुलशन’
क्या अजब है मैं चौंकता भी नहीं
                       --गुलशन मदान

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